शनिवार, 6 नवंबर 2010

आजादी(Aajadee)

   आजादी का स्वपन न देखो,
  आजादी का मोल बड़ा हैं |
  तुम क्या जानो आजादी को,
  रगों में शीतल खून पड़ा हैं |
  जीवन में आदर्श नहीं रहा ,
  बदल गए इन्सान आज सब |
  कैसे हो विशवाश कि तुम,
  हो आजादी के दीवाने |
  ना तुममे वो जोश भरा हैं ,
  और रस्ते अभिमान खड़ा हैं |
  आजाद हो तन से ,
  मन अभी गुलाम पड़ा हैं !
                  जो मांगने आये थे सहारे,
                  बदल गए संस्कार तुम्हारे |
                  वो इन्सान ना थे हरगिज़,
                  पत्थर थे, शैतान थे |
                  और यहाँ  के  इन्सान को 
                  दो नाम दे गए एक को हिन्दू,  
                  एक को मुसलमान कह गए !
  और तुम ! आजादी का जशन मनाते हो ?
  खुद को हिन्दुस्तानी और
  पाकिस्तानी कहलाते हो !
  आजादी का ये पथ ,
  कितना कड़ा था  ?
  उनसे पूछो -
  जो यतीम हो गए
  दो वक्त कि रोटी के
  भूखे नंगे समाज के
  गुलाम हो गए |
                  और आज तुम -
                  फिर बहक रहे हो उन लोगो से
                  जिनका खुद आस्तिव नहीं हैं
                  जो खाते हैं चोर के रोटी
                  हैं जिनकी नियत हद से खोटी
                  भ्रस्टाचार कि जड़ से जन्मे
                  जिनका अपना ईमान नहीं हैं
                  धन दौलत कि पहचान नहीं हैं
                  इन्हें वतन से दूर करो तुम
                  भारत को फिर आजाद करो तुम |    
                      

1 टिप्पणी:

  1. सोच को शब्द देने का सार्थक और प्रशंसनीय प्रयास - हार्दिक शुभकामनाएं

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