इन दोनों तस्वीरो में आप जो दो वृक्ष साथ-साथ देख रहे हैं ये वृक्ष हरियाणा राज्य के रेवाड़ी जिले के गाँव खलीलपुरी में खड़े हैं इनमे से एक से तो आप भली-भाती परिचित हैं वह वृक्ष हैं पीपल का, जिसका की हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व हैं जिसे की इस धर्म में देव तुल्य समझा जाता हैं लेकिन इसके पास खड़ा दूसरा वृक्ष जिसका वानस्पतिक नाम तो मैं नहीं जानता लेकिन यहाँ इस इलाके में इसे इंदोख के नाम से जाना जाता हैं | इस वृक्ष की आस पास के चार गाँवों में पूजा होती हैं जो की यादव बाहुल्य गाँव हैं तथा इनमें ज्यादातर यादव जाति के गिड़द गोत्र के लोग रहते हैं इन गाँवों के नाम खलीलपुरी, माजरा श्योराज, हांसाका, फिदेड़ी हैं जहाँ पर इस वृक्ष को काटना व इसकी लकड़ी को जलाने की मनाही हैं यह कोई क़ानूनी प्रावधान नहीं हैं अपितु स्वयं लोग धार्मिक आस्था के कारण इसके इस प्रकार के इस्तेमाल से डरते हैं| एक और अनोखी मान्यता भी हैं जिसके अनुसार इस वृक्ष की जड़ की मिट्टी को चर्म रोगों पर लगाने से वे रोग ठीक हो जाते हैं | इस तरह की धारणाये कब से प्रचलित हैं इस विषय पर कोई पुख्ता प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं लेकीन यहाँ के लोगो से पूछने पर बस इतना पता चलता हैं की इस तरह की धारणाये स्मर्ति से परे हैं जो की बहुत बरसो पुरानी हो सकती हैं |
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