मंगलवार, 1 मार्च 2011

प्रेम(Love)

प्रेम को अभिव्यक्ति के लिए शब्दों की जरूरत नहीं होती प्रेम स्वयं  दिखाई देता है मुझे प्रकृति से प्रेम है तो मुझे प्रकृति की हर चीज सुंदर नजर  आती है पेड़-पौधे, पहाड़, पक्षी, जानवर, नदियाँ, फूल, कांटे आदि सब कुछ तो खूबसूरत नजर आता हैं किसको किसके प्रति कितना प्रेम हैं यह एक बहुत ही गंभीर विषय है इसके बारे में सम्पूर्ण वर्णन करना न केवल मुश्किल हैं बल्कि नामुकिन हैं श्री रामचरितमानस में भगवान  श्री राम ने सीता जी से कुछ  इस  प्रकार कहा  -   
तत्त्व प्रेम  मम  अरु  तोरा|
जानत प्रिय एक मन मौरा || 
लेकिन क्या आज प्रेम को उसी सत्य अनुभूति से महसूस किया जाता या इसमें वासना का समावेश हो चुका है यह एक प्रथक बहस का विषय हैं लेकिन प्रेम में मिलावट निसंदेह घातक हैं क्योकि प्रेम सास्वत है और वासना छनिक है अगर मनुष्य वासना को प्रेम समझने की भूल करता है तो परिणाम शायद मुझे बताने की जरूरत नहीं हैं| आज के बदलते परिवेश में प्रेम के विषय में अपनी युवा पीढ़ी को जानने की बेहद जरूरत हैं......  

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